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चिरंजीवी योग
अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमान, लंका के राजा विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम यह सात महापुरुष चिरंजीवी है।
सिंह लगन का गुरु शुक्र कर्क चन्द्रमा दूसरे स्थान में कन्या राशि का हो और पापग्रह तीसरे छठे और ग्यारहवें भाव में हो चिरंजीवी योग होता है।
लगन में शनि हो सूर्य और मंगल बारहवें भाव हो बचे हुये सभी ग्रह आठवें स्थान में हो तो व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
मेष लगन में कर्क का सूर्य चौथे स्थान में,शनि मीन राशि का बारहवें स्थान में मंगल सातवें और पूर्ण बली चन्द्रमा यदि बारहवें स्थान में हो तो व्यक्ति चिरंजीवी होता है।
वृष लगन में चन्द्रमा बुध शुक्र एवं गुरु के साथ लगन में हो और बचे हुये सभी ग्रह द्वितीय भाव में हो तो जातक इन्द्र के समान चिरंजीवी होता है।
यदि स्वग्रही गुरु लगन मे या दसवें हो शुक्र मिथुन का केंद्न में हो और ऐसा व्यक्ति लम्बी आयु वाला चिरंजीवी होता है।
यदि सभी ग्रह एक ही राशि मे बैठ कर केन्द्र या त्रिकोण में होते है तो बालक पैदा होते ही मर जाता है लेकिन मंत्र या औषिधि से बच जाता है तो वह चिरंजीवी हो जाता है।
यदि पंचम और नवंम में कोई पापग्रह नही हो तथा केन्द्र में कोई भी सौम्य ग्रह न हो तथा अष्टम स्थान में भी कोई पापग्रह न हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
यदि वृष लगन में शुक्र और गुरु केन्द्र मे हो और अन्य सारे ग्रह तीसरे छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव मे हो तो ऐसा जातक चिरंजीवी होता है।
कर्क लगन में चन्द्रमा वृष राशि में,शनि तुला राशि में गुरु मकर राशि तो जातक चिरंजीवी होता है।
कर्क लगन में कर्क का नवमांश हो गुरु केन्द्र में मंगल मकर में शुक्र सिंह नवमांश में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
कन्या लगन मे कन्या का नवमांश बुध सातवें गुरु केन्द्र में शनि शुरु के अंश में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
शुक्र बारहवां मंगल केन्द्र में गुरु सिंह के नवमांश में होकर केन्द्र में हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
बुध उत्तम अंश में होकर केन्द्र में हो शुक्र आखिरी अंशों में हो गुरु का राशि परिवर्तन हो तो जातक चिरंजीवी होता है।
कर्क लगन हो धनु का नवमांश हो तथा गुरु लगनस्थ हो नवमांश में तीन या चार ग्रह उच्च के हों तो जातक चिरंजीवी होता है।
मृत्यु के प्रकार
मौत के आठ प्रकार माने गये है। केवल शरीर से प्राण निकलना ही मौत की श्रेणी में नही आता है अन्य प्रकार के कारण भी मौत की श्रेणी में आते है। इन आठ प्रकार की मौत का विवरण इस प्रकार से है:-
व्यथा दुखं भयं लज्जा रोग शोकस्तथैव च।
मरणं चापमानं च मृत्युरष्टविध: स्मृत:॥
व्यथा
शरीर में लगातार कोई न कोई क्लेश बना रहना। किसी घर के सदस्य से अनबन हो जाना और उसके द्वारा अपमान सहते रहना। शरीर का ख्याल नही रखना और लगातार शरीर का कमजोर होते जाना। मन कही होना और कार्य कुछ करना बीच बीच में दुर्घटना हो जाना और शरीर मे कष्ट पैदा हो जाना। आंखो मे कमजोरी आजाना,कानो से सुनाई नही देना हाथ पैर में दिक्कत आजाना और दूसरों के भरोसे से जीवन का निकलना आदि बाते व्यथा की श्रेणी में आती है।शत्रुओं से घिरा रहना
बिना किसी कारण के बिना किसी बात के लोगों के द्वारा शत्रुता को पालने लग जाना। किसी भी प्रकार की बात की एवज में शरीर को कष्ट पहुंचाने वाले उपक्रम करना। घर के बाहर निकलते ही लोगों की मारक द्रिष्टि चलने लगना। पिता पुत्र पत्नी माता अथवा किसी भी घर के सदस्य से धन पहिनावा मानसिक सोच सन्तान बीमारी जीवन साथी अपमान धर्म न्याय पैतृक सम्पत्ति कार्य आमदनी यात्रा आदि के कारणों से भी घर के सदस्य अपनी अपनी राजनीति करने लगते है और किसी न किसी प्रकार का मनमुटाव पैदा हो जाता है,जरूरी नही है कि दुश्मनी बाहर के लोगों से ही हो,अपने खास लोगों से रिस्तेदारों से भी हो सकती है।भय
मारकेश का प्रभाव शरीर की सुन्दरता पर भी होता है धन की आवक पर भी होता है अपने को संसार में दिखाने के कारणों पर भी होता है,अपने रहन सहन और मानसिक सोच पर भी होता है सन्तान के आगे बढने पर भी होता है किये जाने वाले रोजाना के कार्यों पर भी होता है,अच्छे या बुरे जीवन साथी के प्रति भी होता है,कोई गुप्त कार्य और गुप्त धन के प्रति भी होता है धर्म और न्याय के प्रति भी होता है जो भी कार्य लगातार लाभ के लिये किये जाते है उनके प्रति भी मारकेश का प्रभाव होता है जो धन कमाकर खर्च किया जाता है उनके प्रति भी मारकेश का प्रभाव होता है और इन कारकों के प्रति भय रहना भी मारकेश की श्रेणी में आता है।लज्जित होना
शरीर में कोई व्यथा है और अपने से छोटे बडे किसी से भी शरीर की पूर्ति के लिये या शरीर को आगे पीछे करने के लिये सहायता मांगी जाती है और जब सहायता के बदले में खोटे वचन सुनने को मिलते है,अपमान भरी बाते सुनने को मिलती है दुत्कारा जाता है,किसी भी वस्तु की चाहत के लिये खरीदने की लालसा है और धन के लिये अपमानित होना पडता है,लिखने पढने या सन्देश देने के लिये किसी सहारे की जरूरत पडती है या कपडों के पहिनने के लिये लालसा होती है उस लालसा के प्रति शक्ति नही होती है अथवा किसी ऐसे देश भाषा या जलवायु में पहुंचा जाता है जहां की भाषा और रीति रिवाज समझ में नही आने से ज्ञानी होने के बाद भी भाषा का अपमान होता है तो लज्जित होना पडता है,यात्रा के साधन है फ़िर भी मारकेश के प्रभाव से यात्रा वाले साधन बेकार हो गये है किसी से सहायता मांगने पर उपेक्षा मिलती है तो समझना चाहिये कि चौथे भाव के मालिक के साथ मारकेश का प्रभाव है,सन्तान के प्रति या सन्तान के द्वारा किसी बात पर उपेक्षा की जाती है तो भी समझना चाहिये कि पंचमेश या पंचम भाव के साथ मारकेश का प्रभाव है।शोक
पैदा होने के बाद पालने पोषने वाले चल बसे,विवाह के बाद पत्नी या सन्तान चल बसी भाई बहिन के साथ भी यही हादसा होने लगा माता का विधवा पन बहिन का विधवा होकर गलत रास्ते पर चले जाना हितू नातेदार रिस्तेदार जहां भी नजर जाती है कोई न कोई मौत जैसा समाचार मिलता है तो भी मारकेश का प्रभाव माना जाता है।अपंगता
शरीर के किसी अवयव का नही होना या किसी उम्र की श्रेणी में किसी अवयव का दूर हो जाना और उस अवयव के लिये कोई न कोई सहायता के लिये तरसना अथवा लोगों के द्वारा उपेक्षा सहना आदि अपंगता के लिये मारकेश को जाना जाता है।अपमानित होना
कहा जाता है कि गुरु को अगर शिष्य तू कह दे तो उसका अपमान हो जाता है और उस गुरु के लिये वह शब्द मौत के समान लगता है। उसी प्रकार से पुत्र अगर पिता को तू कह देता है तो भी पिता का मरण हो जाता है। माता अगर सन्तान की पालना के लिये गलत रास्ते को अपना लेती है तो भी अपमान से मरने वाली बात मानी जाती है,खूब शिक्षा के होने के बाद भी अगर शिक्षा के उपयोग का कारण नही बनता है तो भी अपमानित होना पडता है आदि बाते भी मारकेश की श्रेणी में आती है।शरीर से प्राण निकलना
यह भौतिक मौत कहलाती है जब शरीर की चेतना समाप्त हो जाती है और निर्जीव शरीर मृत शरीर हो जाता है। अक्सर इसे ही मौत की श्रेणी में माना जाता है।यदा मानं लभते माननार्हम,तदा स वै जीवति जीव: लोके।
यदावमानं लभते महांतं,तदा जीवन्मृत इत्युच्यते स:॥
इस जीव जगत में माननीय पुरुष जब तक सम्मान पाता है तभी तक वह वास्तव में जीवित है,जब वह महान अपमान प्राप्त करने लगता है,तब वह जीते जी मरा हुआ कहलाता है।
आयु के विभिन्न मानदंड
बालारिष्ट (जन्म से आठ वर्ष की आयुपर्यंत होने वाली मृत्यु)
यथा लग्न से ६ ८ १२ में स्थान में चन्द्रमा यदि पाप ग्रहों से द्र्ष्ट हो
तो जातक का शीघ्र मरण होता है। सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण का समय हो
सूर्य चन्द्रमा राहु एक ही राशि में हों तथा लग्न पर शनि मंगल की द्रिष्टि
हो तो जातक पन्द्रह दिन से अधिक जीवित नही रहता है,यदि दसवें स्थान में शनि
चन्द्रमा छठे एवं सातवें स्थान में मंगल हो तो जातक माता सहित मर जाता है।
उच्च का का या नीच का सूर्य सातवें स्थान में हो चन्द्रमा पापपीडित हो तो
उस जातक को माता का दूध नही मिलता है वह बकरी के दूध से जीता है या कृत्रिम
दूध पर ही जिन्दा रहत है। इसी प्रकार लग्न से छठे भाव में चन्द्रमा लग्न
में शनि और सप्तम में मंगल हो तो सद्य जात बालक के पिता की मृत्यु हो जाती
है।
इस प्रकार अनेक बालारिष्ट योगिं का वर्णन शास्त्र में मिलता है। गुणीजन बालारिष्ट से बचने का उपाय चांदी का चन्द्रमा मोती डालकर प्राण प्रतिष्ठा करके बालक के गले में पहनाते है क्योंकि चन्द्रमा सभी चराचर जीव की माता माना गया है। जिस प्रकार मां सभी अरिष्टों से अपनी संतान की रक्षा करती है उसी प्रकार से चन्द्रमा बालारिष्ट के कुयोगों से जातक की रक्षा करता है।
इस प्रकार अनेक बालारिष्ट योगिं का वर्णन शास्त्र में मिलता है। गुणीजन बालारिष्ट से बचने का उपाय चांदी का चन्द्रमा मोती डालकर प्राण प्रतिष्ठा करके बालक के गले में पहनाते है क्योंकि चन्द्रमा सभी चराचर जीव की माता माना गया है। जिस प्रकार मां सभी अरिष्टों से अपनी संतान की रक्षा करती है उसी प्रकार से चन्द्रमा बालारिष्ट के कुयोगों से जातक की रक्षा करता है।
शास्त्रकारों ने यह स्पष्ट घोषणा की है कि जन्म से चार वर्षों के भीतर जो
बालक मरता है उसकी मृत्यु माता के कुकर्मों व पापों के कारण होती है। चार
से आठ वर्ष के भीतर की मौत पिता के कुकर्मों व पाप के कारण होती है,नौ से
बारह वर्ष के भीतर की मृत्यु जातक के स्वंय के पूर्वजन्म कृत पाप के कारण
होती है,और आठ वर्ष बाद जातक का स्वतंत्र भाग्योदय माना जाता है। इसलिये कई
सज्जन बालक की सांगोपांग जन्म पत्रिका आठ वर्ष बाद ही बनाते है।
योगारिष्ट
आठ के बाद बीस वर्ष के पहले की मृत्यु को योगारिष्ट कहा जाता है चूंकि विशेष योग के कारण अरिष्ट होती है अत: इसे योगारिष्ट कहा जाता है।अल्पायु योग
बीस से बत्तिस साल की आयु को अल्पायु कहा है। मोटे तौर पर वृष तुला मकर व कुंभ लगन वाले जातक यदि अन्य शुभ योग न हो तो अल्पायु होते है। यदि लग्नेश चर मेष कर्क तुला मकर राशि में हो तो अष्टमेश द्विस्वभाव मिथुन कन्या धनु मीन राशि में हो तो अल्पायु समझना चाहिये। लगनेश पापग्रह के साथ यदि ६ ८ १२ भाव में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो नीच राशिगत अस्त निर्बल यो तो अल्पायु योग होता है। दूसरे और बारहवे भाव में पापग्रह हो केन्द्र में पापग्रह हो लगनेश निर्बल हो उन पर शुभ ग्रहों की द्रिष्टि नही हो तो जातक को अल्पायु समझना चाहिये। इसी प्रकार यदि जन्म लगनेश सूर्य का शत्रु हो जातक अल्पायु माना जाता है।यदि लग्नेश तथा अष्टमेश दोनो ही स्थिर राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। इसी प्रकार शनि और चन्द्रमा दोनो स्थिर राशि में हो अथवा एक चर और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लगन दोनो ही स्थिर राशि की हों अथवा एक चर व दूसरे द्विस्वभाव राशि की हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लग्न द्रिष्काण दोनो ही स्थिर राशि हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लगन द्रिषकाण में एक की चर और दूसरे की द्विस्वभाव राशि तो भी जातक अल्पायु होता है। शुभ ग्रह तथा लग्नेश यदि आपोक्लिम ३ ६ ८ १२ में हो तो जातक अल्पायु होता है। जिस जातक की अल्पायु हो वह विपत तारा में मृत्यु को पाता है।
मध्यायु योग
बत्तिस वर्ष के बाद एवं ६४ वर्ष की आयु सीमा को मध्यायु के भीतर लिया गया है। यदि लग्नेश सूर्य का सम ग्रह बुध हो अर्थात मिथुन व कन्या लग्न वालों की प्राय: मध्यम आयु होती है। यदि लग्नेश तथा अष्टमेश में से एक चर मेष कर्क तुला मकर तथा दोसोअरा स्थिर यानी वृष सिंह वृश्चिक कुंभ राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो ही द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक की मध्यम आयु होती है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण में एक की चर राशि तथा दूसरे की स्थिर राशि हो तो जातक मध्यामायु होता है। यदि शुभ ग्रह पणफ़र यानी २ ५ ८ ११ में हो तो जातक की मध्यमायु होती है। मध्यायु प्रमाण वाले जातक की मृत्यु प्रत्यरि तारा में होती है।दीर्घायु योग
६४ से १२० साल के मध्य को दीर्घायु कहा जाता है। यदि जन्म लगनेश सूर्य का मित्र होता है तो जातक की दीर्घायु मानी जाती है। लगनेश और अष्टमेश दोनो ही चर राशि में हो तो दीर्घायु योग माआ जाता है।यदि लगनेश और अष्टमेश दोनो में एक स्थिर और एक द्विस्वभाव राशि में हो तो भी दीर्घायु योग का होना माना जाता है। यदि शनि और चन्द्रमा दोनो ही चर राशि में हो अथवा एक चर राशि में और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो दीर्घायु होग होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लग्न दोनो ही चर राशि की हो अथवा एक स्थिर व दूसरी द्वस्वभाव राशि की हो तो जातक दीर्घायु होता है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण दोनो की चर राशि हो तो जातक दीर्घायु होता है यदि शुभ ग्रह तथा लगनेश केंद्र में हो तो जातक दीर्घायु होता है। लगनेश केन्द्र में गुरु शुक्र से युत या द्र्ष्ट हो तो भी पूर्णायु कारक योग होता है,लगनेश अष्टमेश सहित तीन ग्रह उच्च स्थान में हो तथा आठवां भाव पापग्रह रहित हो तो जातक का पूर्णायु का योग होता है। लगनेश पूर्ण बली हो तथा कोई भी तीन ग्रह उच्च स्वग्रही तथा मित्र राशिस्थ होकर आठवें में हो तो जातक की पूर्णायु होती है।दिव्यायु
सब शुभ ग्रह केन्द्र और त्रिकोण में हो और पाप ग्रह ३ ६ ११ में हो तथा अष्टम भाव में शुभ ग्रह की राशि हो तो दिव्य आयु का योग होता है। ऐसा जातक यज्ञ अनुष्ठान योग और कायाकल्प क्रिया से हजार वर्ष तक जी सकता है।अमित आयु योग
यदि गुरु गोपुरांश यानी अपने चतुर्वर्ग में होकर केन्द्र में हो शुक्र पारावतांश यानी अपने षडवर्ग में एवं कर्क लगन हो तो ऐसा जातक मानव नही होकर देवता होता है,उसकी आयु की कोई सीमा नही होती है वह इच्छा मृत्यु का कवच पहिने होता है।
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