आयु के विभिन्न मानदंड

बालारिष्ट (जन्म से आठ वर्ष की आयुपर्यंत होने वाली मृत्यु)

यथा लग्न से ६ ८ १२ में स्थान में चन्द्रमा यदि पाप ग्रहों से द्र्ष्ट हो तो जातक का शीघ्र मरण होता है। सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण का समय हो सूर्य चन्द्रमा राहु एक ही राशि में हों तथा लग्न पर शनि मंगल की द्रिष्टि हो तो जातक पन्द्रह दिन से अधिक जीवित नही रहता है,यदि दसवें स्थान में शनि चन्द्रमा छठे एवं सातवें स्थान में मंगल हो तो जातक माता सहित मर जाता है। उच्च का का या नीच का सूर्य सातवें स्थान में हो चन्द्रमा पापपीडित हो तो उस जातक को माता का दूध नही मिलता है वह बकरी के दूध से जीता है या कृत्रिम दूध पर ही जिन्दा रहत है। इसी प्रकार लग्न से छठे भाव में चन्द्रमा लग्न में शनि और सप्तम में मंगल हो तो सद्य जात बालक के पिता की मृत्यु हो जाती है।
इस प्रकार अनेक बालारिष्ट योगिं का वर्णन शास्त्र में मिलता है। गुणीजन बालारिष्ट से बचने का उपाय चांदी का चन्द्रमा मोती डालकर प्राण प्रतिष्ठा करके बालक के गले में पहनाते है क्योंकि चन्द्रमा सभी चराचर जीव की माता माना गया है। जिस प्रकार मां सभी अरिष्टों से अपनी संतान की रक्षा करती है उसी प्रकार से चन्द्रमा बालारिष्ट के कुयोगों से जातक की रक्षा करता है।
शास्त्रकारों ने यह स्पष्ट घोषणा की है कि जन्म से चार वर्षों के भीतर जो बालक मरता है उसकी मृत्यु माता के कुकर्मों व पापों के कारण होती है। चार से आठ वर्ष के भीतर की मौत पिता के कुकर्मों व पाप के कारण होती है,नौ से बारह वर्ष के भीतर की मृत्यु जातक के स्वंय के पूर्वजन्म कृत पाप के कारण होती है,और आठ वर्ष बाद जातक का स्वतंत्र भाग्योदय माना जाता है। इसलिये कई सज्जन बालक की सांगोपांग जन्म पत्रिका आठ वर्ष बाद ही बनाते है। 

योगारिष्ट

आठ के बाद बीस वर्ष के पहले की मृत्यु को योगारिष्ट कहा जाता है चूंकि विशेष योग के कारण अरिष्ट होती है अत: इसे योगारिष्ट कहा जाता है।

अल्पायु योग

बीस से बत्तिस साल की आयु को अल्पायु कहा है। मोटे तौर पर वृष तुला मकर व कुंभ लगन वाले जातक यदि अन्य शुभ योग न हो तो अल्पायु होते है। यदि लग्नेश चर मेष कर्क तुला मकर राशि में हो तो अष्टमेश द्विस्वभाव मिथुन कन्या धनु मीन राशि में हो तो अल्पायु समझना चाहिये। लगनेश पापग्रह के साथ यदि ६ ८ १२ भाव में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो नीच राशिगत अस्त निर्बल यो तो अल्पायु योग होता है। दूसरे और बारहवे भाव में पापग्रह हो केन्द्र में पापग्रह हो लगनेश निर्बल हो उन पर शुभ ग्रहों की द्रिष्टि नही हो तो जातक को अल्पायु समझना चाहिये। इसी प्रकार यदि जन्म लगनेश सूर्य का शत्रु हो जातक अल्पायु माना जाता है।
यदि लग्नेश तथा अष्टमेश दोनो ही स्थिर राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। इसी प्रकार शनि और चन्द्रमा दोनो स्थिर राशि में हो अथवा एक चर और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लगन दोनो ही स्थिर राशि की हों अथवा एक चर व दूसरे द्विस्वभाव राशि की हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लग्न द्रिष्काण दोनो ही स्थिर राशि हो तो जातक अल्पायु होता है। यदि चन्द्रमा लगन द्रिषकाण में एक की चर और दूसरे की द्विस्वभाव राशि तो भी जातक अल्पायु होता है। शुभ ग्रह तथा लग्नेश यदि आपोक्लिम ३ ६ ८ १२ में हो तो जातक अल्पायु होता है। जिस जातक की अल्पायु हो वह विपत तारा में मृत्यु को पाता है।

मध्यायु योग

बत्तिस वर्ष के बाद एवं ६४ वर्ष की आयु सीमा को मध्यायु के भीतर लिया गया है। यदि लग्नेश सूर्य का सम ग्रह बुध हो अर्थात मिथुन व कन्या लग्न वालों की प्राय: मध्यम आयु होती है। यदि लग्नेश तथा अष्टमेश में से एक चर मेष कर्क तुला मकर तथा दोसोअरा स्थिर यानी वृष सिंह वृश्चिक कुंभ राशि में हो तो जातक मध्यायु होता है। यदि लगनेश व अष्टमेश दोनो ही द्विस्वभाव राशि में हो तो जातक की मध्यम आयु होती है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण में एक की चर राशि तथा दूसरे की स्थिर राशि हो तो जातक मध्यामायु होता है। यदि शुभ ग्रह पणफ़र यानी २ ५ ८ ११ में हो तो जातक की मध्यमायु होती है। मध्यायु प्रमाण वाले जातक की मृत्यु प्रत्यरि तारा में होती है।

दीर्घायु योग

६४ से १२० साल के मध्य को दीर्घायु कहा जाता है। यदि जन्म लगनेश सूर्य का मित्र होता है तो जातक की दीर्घायु मानी जाती है। लगनेश और अष्टमेश दोनो ही चर राशि में हो तो दीर्घायु योग माआ जाता है।यदि लगनेश और अष्टमेश दोनो में एक स्थिर और एक द्विस्वभाव राशि में हो तो भी दीर्घायु योग का होना माना जाता है। यदि शनि और चन्द्रमा दोनो ही चर राशि में हो अथवा एक चर राशि में और दूसरा द्विस्वभाव राशि में हो तो दीर्घायु होग होता है। यदि जन्म लगन तथा होरा लग्न दोनो ही चर राशि की हो अथवा एक स्थिर व दूसरी द्वस्वभाव राशि की हो तो जातक दीर्घायु होता है। यदि चन्द्रमा तथा द्रेषकाण दोनो की चर राशि हो तो जातक दीर्घायु होता है यदि शुभ ग्रह तथा लगनेश केंद्र में हो तो जातक दीर्घायु होता है। लगनेश केन्द्र में गुरु शुक्र से युत या द्र्ष्ट हो तो भी पूर्णायु कारक योग होता है,लगनेश अष्टमेश सहित तीन ग्रह उच्च स्थान में हो तथा आठवां भाव पापग्रह रहित हो तो जातक का पूर्णायु का योग होता है। लगनेश पूर्ण बली हो तथा कोई भी तीन ग्रह उच्च स्वग्रही तथा मित्र राशिस्थ होकर आठवें में हो तो जातक की पूर्णायु होती है।

दिव्यायु

सब शुभ ग्रह केन्द्र और त्रिकोण में हो और पाप ग्रह ३ ६ ११ में हो तथा अष्टम भाव में शुभ ग्रह की राशि हो तो दिव्य आयु का योग होता है। ऐसा जातक यज्ञ अनुष्ठान योग और कायाकल्प क्रिया से हजार वर्ष तक जी सकता है।

अमित आयु योग

यदि गुरु गोपुरांश यानी अपने चतुर्वर्ग में होकर केन्द्र में हो शुक्र पारावतांश यानी अपने षडवर्ग में एवं कर्क लगन हो तो ऐसा जातक मानव नही होकर देवता होता है,उसकी आयु की कोई सीमा नही होती है वह इच्छा मृत्यु का कवच पहिने होता है।
 

 

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