मरने के बाद हमारा क्या होता है

जीव् अमर है | उसकी मृत्यु का प्रश्न ही नहीं उठता |अविनासी आत्मा सदैव से है और सदा तक रहेगी | शरीर की मृत्यु को हम लोग अपनी मृत्यु मानते है , बस इस लिए डरते हैंऔर भयभीत होते हैं | यदि अंत;करण को विश्वास हो जाय कि आज की तरह हमें आगे भी जीवीत रहना है , तो डरने की बात नहीं रह जाती है |
मृत्यु का भय अन्य सब भयों से अधिक बलवान होता है , आदमी मौत के डर से कांपता है , कारण परलोक संबंधी अज्ञान है | परलोक विज्ञान के सम्बन्ध मे हाथों- हाथ प्रमाण देकर साबित करना कठिन है | परलोक विद्द्याविशारद ' ओलिवर-लाज' को यही कहना पड़ा कि ''इस आत्म-विज्ञान को हर समय प्रत्यक्ष कर दिखाना मुस्किल है ''|
जीवन और शरीर एक वस्तु नहीं है | जैसे कपड़ों को हम यथा समय बदलते रहते हैं, उसी प्रकार जीव को भी शरीर बदलने पड़ते हैं | सूक्ष्मशरीर मे प्रस्फुटित होने के कारण पुराने शरीर से कुछ विशेष ममता नहीं रह जाती | 
जब तक मृतशरीर की अंतेष्टि क्रिया होती है जीव शरीर बार-बारउसके आस-पास मडराता है, परंतु जला देने पर वह उसी समय दूसरीओर मन लौटा लेता है|
अचानक और उग्रवेदना के साथ मृत्यु होने के कारण स्थूल शरीर के बहुत से परमाणु सूक्ष्म शरीर के साथ मिल जाते हैं , इसलिए मृत्यु के उपरांत उनका शरीर कुछ जीवित,कुछ मृतक, कुछ स्थूल , कुछ सूक्ष्म सा रहता है | ऐसी आत्माएं प्रेत रूप से प्रत्यक्ष- सी दिखाई देती हैं और अदृश्य भी हो जाती हैं | अपघात से मरे जीव सताधारी प्रेत के रूप मे विद्दमान रहते हैं और उनकी विषम स्थिति मानसिक नीद भी नहीं लेने देती है | वे बदला लेने की इक्षा से या इन्द्रिय वासनावों को तृप्त करने के लिए किसी पीपल के पुराने पेड़ की गुफा , खँडहर या जलाशय के आस --पास पड़े रहते हैंऔर जब अवसर देखते हैं ,अपना बदला लेने की इक्षा से प्रकट हो जाते हैं.....

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