जो दृश्यमान है  वह  एक  ...

जो दृश्यमान है  वह  एक  छलावा है ।

वेदांत दर्शन कहता है जो कुछ भी प्रत्यक्ष है दृश्यमान है, वह नित्य नहीं है, यथार्थ नहीं है, अपितु सतत् परिवर्तनशील है, अवास्तविक है। फिर सत्य क्या है? उसे प्राप्त कैसे किया जाय? इस दृश्य जगत के कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है।

प्रकाश को ही ले व उसका विश्लेषण करें तो ज्ञात होता है कि उसमें विद्युत चुम्बकीय लहरें मात्र हैं। एक सेकेंड में एक लाख छियासी हजार मील की तीव्र गति से चलने वाले प्रकाश अणुओं को सात रंग की किरणों में विभक्त किया जा सकता है। इन कारणों को न्यूनाधिकता ही रंग-भेद का कारण है।

सामान्यतया कहा यह जाता है कि संसार में एक वस्तु एक रंग की है, दूसरी अन्य रंग की। परन्तु वास्तविकता कुछ और ही है। किसी भी वस्तु का अपना निज का कोई रंग नहीं है। जिस विशेष रंग की किरणों को वह पदार्थ अवशोषित न कर उसे वापस कर देता है, वे जब आँखों के ज्ञान तन्तु से टकराती हैं, तो वह पदार्थ उसी रंग का मालूम पड़ता है।

इसी तरह दिखाई देने वाले सभी पेड़ पौधे बिना किसी रंग के हैं। पर वे प्रकाश की हरी किरणें अवशोषित न कर पाने के कारण हरे रंग के प्रतीत होते हैं। हम इसी प्रतीति को सनातन सत्य मानते रहते हैं। यदि कोई इस मान्यता के अलावा और कुछ कहे तो उसकी बात पर हँसते हैं, और उस भ्रान्त, दुराग्रही जैसी संज्ञा देते हैं। जबकि सच्चाई यही है कि प्रकृति की जादूगरी, कलाबाजी हमें छलावा दे रही है। पेड़ पौधे तो एक उदाहरण हैं। अन्य सभी रंगों के बारे में भी हम भ्रम जाल में ही पड़े हैं।

काला रंग हमको सबसे गहरा लगता है और सफेद रंग को रंग ही नहीं मानते, जबकि बात इससे सर्वथा उलटी है किसी भी रंग का न दिखना काला रंग है और सातों रंग का मिश्रण सफेद रंग। घनघोर छाया अँधेरा कुछ भी नहीं है। इसीलिए वैशेषिक दर्शन अँधेरे को कोई पदार्थ नहीं मानता जबकि अन्य चिन्तक उसे एक तत्व विशेष की मान्यता देने में खूब जोर लगाते हैं। होता यह है कि कालिमा अपने में सभी प्रकाश किरणों को शोषित कर लेती हैं और हम अँधेरे में ठोकर खाते रहते हैं।

जबकि सफेद रंग किसी भी किरण को नहीं सोखता है। उससे टकराकर सभी प्रकाश तरंगें वापस आती हैं और आँखों से टकराने पर सातों रंगों का समूह हमें सफेद लगता है। कैसी विचित्रता है? एक प्रकार का इन्द्रजाल है, जिसे स्वीकार करने का मन नहीं होता अस्वीकार भी नहीं कर सकते। इन वैज्ञानिक सिद्धियों को अमान्य कैसे ठहराया जाय।

एक सवाल और है कि प्रकाश किरणों में रंग कहाँ से आता है।? इसका उत्तर और भी विचित्र है। इन प्रकाश तरंगों की लम्बाई में पाया जाने वाला अन्तर (वेव लेंग्थ) ही रंगों के रूप में दिखता है। सही माने तो रंग नाम की चीज इस दुनिया में है ही नहीं।

विद्युत चुम्बकीय तरंगें ही प्रकाश है। इनकी तरंग दैर्ध्य की भिन्नता का अनुभव मस्तिष्क भिन्न-भिन्न तरह से करता है। अनुभूति की यह भिन्नता ही भिन्न रंगों के रूप में प्रकट होती है। सातों रंग एवं इनके परस्पर मिलने से बनने वाले विविध रंगों का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रकाश तरंगों की तरंग दैर्ध्य का विवेचन मस्तिष्कीय अनुभूति से ही कर सकना सम्भव है। रंगों की अपनी यथार्थ सत्ता कुछ भी नहीं।

आँखों का यह धोखा मस्तिष्क का बहकना, रंगों के संसार में प्रथम पग रखते ही स्पष्ट हो जाता है। अन्य विषयों में भी हम किस तरह से भ्रमित हैं, कोई ठिकाना नहीं। हमारे जीवन का लक्ष्य, प्रयोजन और स्वरूप क्या है? यह तो पूरी तरह से भूल चूके हैं, और जानने की चिन्ता भी नहीं। अपनी बहिर्मुखी प्रवृत्ति के कारण जड़ जगत में अपनी मान्यता को भिन्न-भिन्न तरह से फैला कर प्रिय-अप्रिय के रूप में मान बैठे हैं। आत्मज्ञान की दिव्य दृष्टि यदि हम पा सके तो जान सकेंगे की किस अज्ञान के दल दल में जा फँसे हैं। इससे उबरने बिना सत्य का साक्षात्कार कर सकना असम्भवप्राय है।

मरने के बाद हमारा क्या होता है

जीव् अमर है | उसकी मृत्यु का प्रश्न ही नहीं उठता |अविनासी आत्मा सदैव से है और सदा तक रहेगी | शरीर की मृत्यु को हम लोग अपनी मृत्यु मानते है , बस इस लिए डरते हैंऔर भयभीत होते हैं | यदि अंत;करण को विश्वास हो जाय कि आज की तरह हमें आगे भी जीवीत रहना है , तो डरने की बात नहीं रह जाती है |
मृत्यु का भय अन्य सब भयों से अधिक बलवान होता है , आदमी मौत के डर से कांपता है , कारण परलोक संबंधी अज्ञान है | परलोक विज्ञान के सम्बन्ध मे हाथों- हाथ प्रमाण देकर साबित करना कठिन है | परलोक विद्द्याविशारद ' ओलिवर-लाज' को यही कहना पड़ा कि ''इस आत्म-विज्ञान को हर समय प्रत्यक्ष कर दिखाना मुस्किल है ''|
जीवन और शरीर एक वस्तु नहीं है | जैसे कपड़ों को हम यथा समय बदलते रहते हैं, उसी प्रकार जीव को भी शरीर बदलने पड़ते हैं | सूक्ष्मशरीर मे प्रस्फुटित होने के कारण पुराने शरीर से कुछ विशेष ममता नहीं रह जाती | 
जब तक मृतशरीर की अंतेष्टि क्रिया होती है जीव शरीर बार-बारउसके आस-पास मडराता है, परंतु जला देने पर वह उसी समय दूसरीओर मन लौटा लेता है|
अचानक और उग्रवेदना के साथ मृत्यु होने के कारण स्थूल शरीर के बहुत से परमाणु सूक्ष्म शरीर के साथ मिल जाते हैं , इसलिए मृत्यु के उपरांत उनका शरीर कुछ जीवित,कुछ मृतक, कुछ स्थूल , कुछ सूक्ष्म सा रहता है | ऐसी आत्माएं प्रेत रूप से प्रत्यक्ष- सी दिखाई देती हैं और अदृश्य भी हो जाती हैं | अपघात से मरे जीव सताधारी प्रेत के रूप मे विद्दमान रहते हैं और उनकी विषम स्थिति मानसिक नीद भी नहीं लेने देती है | वे बदला लेने की इक्षा से या इन्द्रिय वासनावों को तृप्त करने के लिए किसी पीपल के पुराने पेड़ की गुफा , खँडहर या जलाशय के आस --पास पड़े रहते हैंऔर जब अवसर देखते हैं ,अपना बदला लेने की इक्षा से प्रकट हो जाते हैं.....

ग्रह और मृत्यु

चन्द्र के क्षीण होने से मनुष्य का मनोबल कमजोर हो जाता है, विवेक काम नहीं करता और अनुचित अपघात पाप कर्म कर बैठता है। अमावस्या व एकादशी के बीच तथा पूर्णिमा के आस-पास चन्द्र कलायें क्षीण व बढ़ती हैं इसलिये ये घटनायें इस समय में होती हैं।

तमोगुणी मंगल का अधिकार सिर, एक्सीडेन्ट, आगजनी, हिंसक घटनाओं पर होता है ॥

शनि का आधिपत्य मृत्यु, फांसी व वात सम्बन्धी रोगों पर होता है।

छाया ग्रह राहु-केतु का प्रभाव आकस्मिक घटनाओं तथा पैंर, तलवों पर विशेष रहता है। ग्रहों के दूषित प्रभाव से अल्पायु, दुर्घटना, आत्महत्या, आकस्मिक घटनाओं का जन्म होता है। 

मृत्यु योग

1- लग्न की महादशा हो और अन्तर्दशा लग्न के शत्रु ग्रह की हो तो मनुष्य की अकस्मात मृत्यु होती है।

2- छठे स्थान के स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो अकस्मात आपरेशन से मृत्यु हो।

3- लग्न से तृतीय स्थान में या कारक ग्रह से तृतीय स्थान में सूर्य हो तो राज्य के कारण मृत्यु हो।

4- यदि शनि चर व चर राशि के नवांश में हो तो दूर देश में मृत्यु हो।

5- अष्टम में स्थिर राशि हो उस राशि का स्वामी स्थिर राशि में हो तो गृह स्थान में जातक की मृत्यु होती है।

6- द्विस्वभाव राशि अष्टम स्थान मं हो तथा उसका स्वामी भी द्विस्वभाव राशिगत हो तो पथ (रास्ते) में मृत्यु हो।

7- तीन ग्रह एक राशि में बैठे हों तो जातक सहस्र पद से युक्त पवित्र स्थान गंगा के समीप मरता है।

8- लग्न से 22 वें द्रेष्काण का स्वामी या अष्टमभाव का स्वामी नवम भाव में चन्द्र हो तो काशीतीर्थ बुध शुक्र हो तो द्वारिका में मृत्यु हो।

9- अष्टम भाव में गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु बुरी हालत में होती है।

मृत्यु फांसी के द्वारा

1- द्वितीयेश और अष्टमेश राहु व केतु के साथ 6, 8, 12 वें भाव में हो। सारे ग्रह मेष, वृष, मिथुन राशि में हो।

2- चतुर्थ स्थान में शनि हो दशम भाव में क्षीण चन्द्रमा के साथ मंगल शनि बैठे हों

3- अष्टम भाव बुध और शनि स्थित हो तो फांसी से मृत्यु हो।

4- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ 9, 5, 11 वे भाव में हो।

5- शनि लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु क्षीण चन्द्रमा युत हों तो जातक की गोली या छुरे से मृत्यु अथवा हत्या हो।

6- नवमांश लग्न में सप्तमेश राहु, केतु से युत 6, 8, 12 वें भाव मं स्थित हों तो आत्महत्या करता है।

7- चैथे व दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो फांसी से मृत्यु होती है

8- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ पंचम या एकादश स्थान में हो तो सूली से मृत्यु होती है।

दुर्घटना से मृत्यु योग

1- चतुर्थेश, षष्ठेश व अष्टमेश से सम्बन्ध हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना मं हो।

2- यदि अष्टम भाव में चन्द्र, मंगल, शनि हो तो मृत्यु हथियार द्वारा हो।

3- चन्द्र सूर्य मंगल शनि 8, 5 तथा 9 में हो तो मृत्यु ऊँचाई से गिरने समुद्र, तूफान या वज्रपात से हो।

4- अष्टमेश तथा अष्टम, षष्ठ तथा षष्ठेश और मंगल का इन सबसे सम्बन्ध हो तो मृत्यु शत्रु द्वारा होती है।

5- अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो, इन पर मंगल की दृष्टि हो तो अकाल मौत हो। जन्म विषघटिका में होने से विष, अग्नि क्रूरजीव से मृत्यु हो।

6- जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना तथा सवारी से गिरने से होती है।

7- मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम भाव में क्षीण चन्द्र के साथ हो तो पक्षी के कारण दुर्घटना में मृत्यु हो।

8- सूर्य, मंगल, केतु की यति हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अग्नि दुर्घटना में मृत्यु हो। चन्द्र मेष$ वृश्चिक राशि में हो तो पाप ग्रह की दृष्टि से अग्नि अस्त्र से मृत्यु हो।

9- द्विस्वभाव राशि लग्न में सूर्य+चन्द्र हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से हो।

10- लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हो, मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में हो। द्वादश भाव में मंगल अष्टम भाव में शनि से हथियार द्वारा हत्या हो।

11- यदि नंवाश लग्न में सप्तमेश शनि युत हो 6, 8, 12 में हो जहर खाने से मृत्यु हो ।

12- चन्द्र मंगल अष्टमस्थ हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है। 13- लग्नेश अष्टमेश और सप्तमेश साथ बैठे हों तो जातक स्त्री के साथ मरता है।

आत्म हत्या से मृत्यु योग

1- लग्न व सप्तम भाव में नीच ग्रह हों
2- लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध व्ययेश से हो।
3- अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात हो ।
4- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में पानी में डूबकर आत्मघात कराता है
5- यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना, बीमारी से मरता है।

ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग

1- चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हों, शनि दशम भाव मं स्थित हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा अपेंडिक्स रोग से मौत हो सकती है।

2- द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ स्थान में चन्द्र, दशम स्थान में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है।

3- दशम स्थान में सूर्य और चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो कार, बस, वाहन या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

4- शनि कर्क और चन्द्रमा मकर राशिगत हो तो जल से अथवा जलोदर से मृत्यु हो।

5- शनि चतुर्थस्थ, चन्द्रमा सप्तमस्थ और मंगल दशमस्थ हो तो कुएं में गिरने से मृत्यु होती है

6- क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो उसके साथ मं$रा$शनि हो तो पिशाचादि दोष से मृत्यु हो।

7- जातक का जन्म विष घटिका में होने से उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव से होती है।

8- द्वितीय में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख मं कृमिरोग से मृत्यु होती है।

9- शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम, लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी की मार से मृत्यु हो।

10- यदि मंगल नवमस्थ और शनि, सूर्य राहु एकत्र हो, शुभ ग्रह दृष्ट न हो तो बाण से मृत्यु हो

11- अष्टम भाव में चन्द्र के साथ मंगल, शनि, राहु हो तो मृत्यु मिर्गी से हो।

12- नवम भाव में बुध शुक्र हो तो हृदय रोग से मृत्यु होती है।

13- अष्टम शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह से होती है

14- स्त्री की जन्म कुण्डली सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि या वृश्चिक राशिगत होकर पापी ग्रहों के बीच हो तो महिला शस्त्र व अग्नि से अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है।

15- स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य एवं चन्द्रमा लग्न से तृतीय, षष्ठम, नवम, द्वादश भाव में स्थित हो तो तथा पाप ग्रहों की युति व दृष्टि हो तो महिला फंासी लगाकर या जल में कूद कर आत्म हत्या करती है।

16- द्वितीय भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु हो

17- सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री पहाड़ से गिर कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

18- दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि से महिला की डिप्रेशन से मृत्यु हो।

19- पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय मृत्यु हो ।

20- महिला की जन्मकुण्डली में मंगल द्वितीय भाव में हो, चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, शनि चतुर्थ भाव में हो तो स्त्री कुएं, बाबड़ी, तालाब में कूद कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

लग्नेश के नवांश से मृत्यु, रोग अनुमान

1- मेष नवांश हो तो ज्वर, ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो
2- वृष नवांश हो तो दमा, शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो।
3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना,
4- कर्क नवांश वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो।
5- सिंह नवांश हो तो विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु।
6- कन्या नवांश हो तो गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो।
7- तुला नवांश में शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो।
8- वृश्चिक नवांश में पत्थर अथवा शस्त्र चोट, पाण्डु ग्रहणी वेग से।
9- धनु नवांश में गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो।
10- मकर नवांश में व्याघ्र, शेर, पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु।
11- कुंभ नवांश में स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो।
12- मीन नवांश में जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो।

गुलिक से मृत्युकारी रोग अनुमान

1- गुलिक नवांश से सप्तम शुभग्रह हो तो मृत्यु सुखकारी होगी।
2- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में मंगल हो तो जातक की युद्ध लड़ाई में मृत्यु होगी।
3- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में शनि हो तो मृत्यु चोर, दानव, सर्पदंश से होगी।
4- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में सूर्य हो तो राजकीय तथा जलजीवांे से मृत्यु।

अरिष्ट महादशा व दशान्तर में मृत्यु

1- अष्टमेश भाव 6, 8, 12 मं हो तो अष्टमेश की दशा-अन्तर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह अन्तर्दशा में मृत्यु होती है।
2- कर्क, वृश्चिक, मीन के अन्तिम भाग ऋक्ष संधि कहलाते हैं। ऋक्ष सन्धि ग्रह की दशा मृत्युकारी होती है।
3- जिस महादशा में जन्म हो महादशा से तीसरा, पांचवां, सातवें भाव की महादशा यदि नीच, अस्त, तथा शत्रु ग्रह की हो तो मृत्यु होती है।
4- द्वादशेश की महादशा में द्वितीयेश का अन्तर आता है अथवा द्वितीयेश दशा में द्वादश अन्तर में अनिष्टकारी मृत्यु तुल्य होता है।
5- छिद्र ग्रह सात होते हैं

1. अष्टमेश,
2. अष्टमस्थ ग्रह,
3. अष्टमदर्शी ग्रह,
4. लग्न से 22 वां द्रेष्काण अर्थात अष्टम स्थान का द्रेष्काण जिसे रवर कहते हैं उस द्रेष्काण स्वामी,
5. अष्टमेश के साथ वाला ग्रह,
6. चन्द्र नवांश से 64 वां नवांशपति,
7. अष्टमेश का अतिशत्रु ग्रह।

इन सात में से सबसे बली ग्रह की महादशा कष्टदायक व मृत्युकारी होगी।

1. आकस्मिक मृत्यु के बचाव के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। जप रुद्राक्ष माला से पूर्वी मुख होकर करें।

2. वाहन चलाते समय मादक वस्तुओं का सेवन न करें तथा अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन न करें अन्यथा पिशाची बाधा हावी होगी वैदिक गायत्री मंत्र कैसेट चालू रखें।

3. गोचर कनिष्ठ ग्रहों की दशा में वाहन तेजी से न चलायें।

4. मंगल का वाहन दुर्घटना यंत्र वाहन में लगायें, उसकी विधिवत पूजा करें।

5. नवग्रह यंत्र का विधिविधान पूर्वक प्रतिष्ठा कर देव स्थान में पूजा करें।

6. सूर्य कलाक्षीण हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्र की कला क्षीण हो तो चन्द्रशेखर स्तोत्र, मंगल की कला क्षीण हो तो हनुमान स्तोत्र, शनि कला क्षीण हो तो दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। राहु की कला क्षीण हो तो भैरवाष्टक व गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

गणित पद्धति से अरिष्ट दिन मृत्यु समय के लग्न, अरिष्ट मास का ज्ञान अरिष्ट मास:

1- लग्न स्फूट और मांदी स्फुट को जोड़कर जो राशि एवं नवांश हो उस राशि के उसी नवांश पर जब गोचर में सूर्य आता है तब जातक की मृत्यु होती है।
2- लग्नेश के साथ जितने ग्रह हां उन ग्रहों की महादशा वर्ष जोड़कर 12 का भाग दें। जो शेष बचे उसी संख्यानुसार सौर मास में अरिष्ट होगा।

अरिष्ट दिन:

1- मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़कर 18 से गुणन करें उसमें शनि स्फुट को जोड़कर 9 से गुणन कर जोड़ दें। जब गोचर चन्द्र उस राशि के नवांश में जाता है तो उस दिन अरिष्ट दिन होगा।

मृत्यु समय लग्न का ज्ञान:

2- लग्न स्फुट मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़ देने से जो राशि आये उसी राशि के उदय होने पर जातक की मृत्यु होती है। 

महान नास्तिक लोग जिन्होंने मानव सभ्यता ...

दुनिया के वो महान नास्तिक लोग जिन्होंने मानव सभ्यता के विकास को गति दी

1- आचार्य चार्वाक का कहना था -"इश्वर एक रुग्ण विचार प्रणाली है , इससे मानवता का कोई कल्याण होने वाला नहीं है।"
2 - अजित केशकम्बल ( 523 ई . पू )अजित केश्कंबल बुद्ध के समय कालीन विख्यात तीर्थंकर थे , त्रिपिटीका में अजित के विचार कई जगह आये हैं , उनका कहना था - "दान, यज्ञ , हवन नहीं .. लोक परलोक नहीं।"
3 - सुकरात ( 466-366 ई पू ) "इश्वर केवल शोषण का नाम है।"
4 - इब्न रोश्द ( 1126-1198 ) इनका जन्म स्पेन के मुस्लिम परिवार में हुआ था , रोश्द के दादा जामा मस्जिद के इमाम थे , इन्हें कुरआन कंठस्थ थी। इन्होने अल्लाह के अस्तित्व को नकार दिया था और इस्लाम को राजनैतिक गिरोह कहा था। जिस कारण मुस्लिम धर्मगुरु इनकी जान के पीछे पड़ गए थे। रोश्द ने दर्शन के बुद्धि प्रधान हथियार से इस्लाम के मजहबी वादशास्त्रियों की खूब खबर ली।
5 - कॉपरनिकस ( 1473-1543) इन्होने धर्म गुरुओं की पोल खोली थी, इसमें धर्मगुरु ये कह कर को मुर्ख बना रहे थे की सूर्य प्रथ्वी के चक्कर लगता है। कॉपरनिकस ने अपने प्रयोग से ये सिद्ध कर दिया की प्रथ्वी सहित सौर मंडल के सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते हैं, जिस कारण धर्म गुरु इतने नाराज हुए की कोपरनिकस के सभी सार्थक वैज्ञानिको को कठोर दंड देना प्रारंभ कर दिया।
6 - मार्टिन लूथर ( 1483-1546) इन्होने जर्मनी में अन्धविश्वास, पाखंड और धर्मगुरुओं के अत्याचारों के खिलाफ आन्दोलन किया। इन्होने कहा था "व्रत, तीर्थयात्रा, जप, दान आदि सब निरर्थक है।"
7- सर फ्रेंसिस बेकन ( 1561-1626) अंग्रेजी के सारगर्भित निबंधो के लिए प्रसिद्ध, तेइस साल की उम्र में ही पार्लियामेंट के सदस्य बने, बाद में लार्ड चांसलर भी बने। उनका कहना था, "नास्तिकता व्यक्ति को विचार, दर्शन, स्वाभाविक निष्ठां , नियम पालन की और ले जाती है, ये सभी चीजे सतही नैतिक गुणों की पथ दर्शिका हो सकती हैं।"
8 - बेंजामिन फ्रेंकलिन (1706-1790) इनका कहना था "सांसारिक प्रपंचो में मनुष्य धर्म से नहीं बल्कि इनके न होने से सुरक्षित है।"
9- चार्ल्स डार्विन (1809-1882) इन्होने ईश्वरवाद और धार्मिक गुटों पर सर्वाधिक चोट पहुचाई, इनका कहना था "मैं किसी ईश्वरवाद में विश्वास नहीं रखता और न ही आगामी जीवन के बारे में।"
10- कार्ल मार्क्स ( 1818-1883) कार्ल मार्क्स का कहना था "ईश्वर का जन्म एक गहरी साजिश से हुआ है" और "धर्म एक अफीम है" उनकी नजर में धर्म विज्ञानं विरोधी, प्रगती विरोधी, प्रतिगामी, अनुपयोगी और अनर्थकारी है। इसका त्याग ही जनहित में है।
11- पेरियार (1879-1973) इनका जन्म तमिलनाडु में हुआ और इन्होने जातिवाद, ईश्वरवाद, पाखंड, अन्धविश्वास पर जम के प्रहार किया l
12- अल्बर्ट आइन्स्टीन ( 1879-1955) विश्वविख्यात वैज्ञानिक का कहना था "व्यक्ति का नैतिक आचरण मुख्य रूप से सहानभूति, शिक्षा और सामाजिक बंधन पर निर्भर होना चाहिए, इसके लिए धार्मिक आधार की कोई आवश्यकता नहीं है। मृत्यु के बाद दंड का भय और पुरस्कार की आशा से नियंत्रित करने पर मनुष्य की हालत दयनीय हो जाती है।"
13- भगत सिंह (1907-1931) प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी भगत सिंह ने अपनी पुस्तक "मैं नास्तिक क्यों हूँ?" में कहा है "मनुष्य ने जब अपनी कमियों और कमजोरियों पर विचार करते हुए अपनी सीमाओं का अहसास किया तो मनुष्य को तमाम कठिनाईयों का साहसपूर्ण सामना करने और तमाम खतरों के साथ वीरतापूर्ण जुझने की प्रेरणा देनेवाली तथा सुख दिनों में उच्छखल न हो जाये इसके लिए रोकने और नियंत्रित करने के लिए ईश्वर की कल्पना की गयी है।"
14- लेनिन– लेनिन के अनुसार "जो लोग जीवन भर मेहनत मशक्कत करते है और आभाव में जीते हैं उन्हें धर्म इहलौकिक जीवन में विनम्रता और धैर्य रखने की तथा परलोक में सुख की आशा से सांत्वना प्राप्त करने की शिक्षा देता है, परन्तु जो लोग दुसरो के श्रम पर जीवित रहते हैं उन्हें इहजीवनमें दयालुता की शिक्षा देता है, इस प्रकार उन्हें शोषक के रूप में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने का एक सस्ता नुस्खा बता देता है।"
15- गौतम बुद्ध – बुद्ध कहते है की भगवान नाम की कोई चीज नही है! भगवान के लिये अपना समय नष्ट मत करो। केवल सत्य ही सब कुछ है।
16- रामस्वरूप वर्मा (संस्थापक- अर्जक संघ)-अर्जक समाज का शोषण करने के लिए ईश्वर, आत्मा, पुनर्जन्म, भाग्यवाद , जाती-पाती, छुआछूत आदि ब्राह्मणों ने बनाया है।

17.Dinesh Aastik_ चमत्कारी शक्ति का दावा करने वाले बाबाओं के लिए 22 खुली चुनौतियाँ
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डा0 अब्राहम कोवूर ने अंधविश्वास के विरूद्ध जोरदार लडाई लडी। वह कोलम्बो में विज्ञान विभाग के प्रधान थे। 1959 में उससे रिटायर होने के बाद अपने इसी मिशन में लगे रहे। उनका कहना था कि जो व्यक्ति चमत्कारी शक्तियों का दावा करते हैं, केवल पाखंडी या दिमागी तौर पर पागल व्यक्ति हैं।

उन्होंने तमाम बाबाओं को खुली चुनौती देते हुए 22 चुनौतियाँ रखी थीं। कहा - जो भी व्यक्ति इनमें से एक चुनौती में भी खरा उतर कर दिखाएगा, उसे एक लाख रूपये का नकद इनाम दिया जाएगा-
1- जो किसी सीलबंद करेंसी नोट की ठीक नकल पैदा कर सकता हो।
2- जो किसी सीलबंद करेंसी नोट का नंबर पढ सकता हो।
3- जो जलती आग में आधे मिनट के लिए नंगे पैर खडा हो सकता हो।
4- ऐसी वस्तु जो मैं मांगूं, हवा में से लाकर दे।
5- टेलीपैथी द्वारा किसी के विचार पढ कर बता सकता हो।
6- मनोवैज्ञानिक शक्ति से किसी वस्तु को हिला या मोड सकता हो।
7- प्रार्थना या आत्मिक शक्ति या पवित्र राख से अपने शरीर को एक इंच बढा सकता हो।
8- जो योग शक्ति द्वारा हवा में उड सके।
9- यौगिक शक्ति से पांच मिनट के लिए अपनी नब्ज रोक सके।
10- पानी पर पैदल चल सके।
11- अपना शरीर एक स्थान पर छोड कर दूसरी जगह हाजिर हो।
12- 30 मिनट के लिए श्वास क्रिया रोक सके।
13- रचनात्मक बुद्धि का विकास करे। भक्ति या अज्ञात शक्ति द्वारा अत्मज्ञान प्राप्त करे।
14- पुनर्जन्म के तौर पर कोई अनोखी भाषा बोल सके।
15- ऐसी आत्मा या प्रेत हाजिर करे, जिसकी फोटो खींची जा सकती हो।
16- फोटो खींचने के बाद वह फोटो से अलोप हो सके।
17- ताला लगे कमरे में से अलौकिक शक्ति द्वारा बाहर निकल सके।
18- किसी बस्तु का भार बढा सके।
19- छिपी हुई वस्तु को खोज सके।
20- पानी को शराब या पेट्रोल में बदल सके।
21- शराब को रक्त में बदल सके।
22- किसी चित्र या जन्म पत्रियों को देख कर उन आदमियों या औरतों की पहचान कर ले.
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यह चुनौती डा0 कोवूर द्वारा 1963 में सारे विश्व के अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित कराई गयी। वर्ष 1978 में उसकी मौत तक कोई भी व्यक्ति एक भी चुनौती नहीं जीत सका। उनकी मृत्यु के बाद भी यह चुनौती बंद नहीं हुई है। रेशनेलिस्ट सोसायटी हरियाणा  ने इस चुनौती को जारी रखा है. पांच लाख रुपए IC के साथ।जो कुछ शर्तों के आज भी जारी है।
आश्चर्य का विषय यह है कि 1963 से चली आ रही इन चुनौतियों को कोई भी चमत्कारी बाबा पूरा नहीं कर सका है। क्या इससे डा0 कोवूर का उपरोक्त कथन कि जो व्यक्ति चमत्कारी शक्तियों का दावा करते हैं, केवल पाखंडी या दिमागी तौर पर पागल व्यक्ति हैं