ग्रह और मृत्यु

चन्द्र के क्षीण होने से मनुष्य का मनोबल कमजोर हो जाता है, विवेक काम नहीं करता और अनुचित अपघात पाप कर्म कर बैठता है। अमावस्या व एकादशी के बीच तथा पूर्णिमा के आस-पास चन्द्र कलायें क्षीण व बढ़ती हैं इसलिये ये घटनायें इस समय में होती हैं।

तमोगुणी मंगल का अधिकार सिर, एक्सीडेन्ट, आगजनी, हिंसक घटनाओं पर होता है ॥

शनि का आधिपत्य मृत्यु, फांसी व वात सम्बन्धी रोगों पर होता है।

छाया ग्रह राहु-केतु का प्रभाव आकस्मिक घटनाओं तथा पैंर, तलवों पर विशेष रहता है। ग्रहों के दूषित प्रभाव से अल्पायु, दुर्घटना, आत्महत्या, आकस्मिक घटनाओं का जन्म होता है। 

मृत्यु योग

1- लग्न की महादशा हो और अन्तर्दशा लग्न के शत्रु ग्रह की हो तो मनुष्य की अकस्मात मृत्यु होती है।

2- छठे स्थान के स्वामी का सम्बन्ध मंगल से हो तो अकस्मात आपरेशन से मृत्यु हो।

3- लग्न से तृतीय स्थान में या कारक ग्रह से तृतीय स्थान में सूर्य हो तो राज्य के कारण मृत्यु हो।

4- यदि शनि चर व चर राशि के नवांश में हो तो दूर देश में मृत्यु हो।

5- अष्टम में स्थिर राशि हो उस राशि का स्वामी स्थिर राशि में हो तो गृह स्थान में जातक की मृत्यु होती है।

6- द्विस्वभाव राशि अष्टम स्थान मं हो तथा उसका स्वामी भी द्विस्वभाव राशिगत हो तो पथ (रास्ते) में मृत्यु हो।

7- तीन ग्रह एक राशि में बैठे हों तो जातक सहस्र पद से युक्त पवित्र स्थान गंगा के समीप मरता है।

8- लग्न से 22 वें द्रेष्काण का स्वामी या अष्टमभाव का स्वामी नवम भाव में चन्द्र हो तो काशीतीर्थ बुध शुक्र हो तो द्वारिका में मृत्यु हो।

9- अष्टम भाव में गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु बुरी हालत में होती है।

मृत्यु फांसी के द्वारा

1- द्वितीयेश और अष्टमेश राहु व केतु के साथ 6, 8, 12 वें भाव में हो। सारे ग्रह मेष, वृष, मिथुन राशि में हो।

2- चतुर्थ स्थान में शनि हो दशम भाव में क्षीण चन्द्रमा के साथ मंगल शनि बैठे हों

3- अष्टम भाव बुध और शनि स्थित हो तो फांसी से मृत्यु हो।

4- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ 9, 5, 11 वे भाव में हो।

5- शनि लग्न में हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु क्षीण चन्द्रमा युत हों तो जातक की गोली या छुरे से मृत्यु अथवा हत्या हो।

6- नवमांश लग्न में सप्तमेश राहु, केतु से युत 6, 8, 12 वें भाव मं स्थित हों तो आत्महत्या करता है।

7- चैथे व दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो फांसी से मृत्यु होती है

8- क्षीण चन्द्रमा पाप ग्रह के साथ पंचम या एकादश स्थान में हो तो सूली से मृत्यु होती है।

दुर्घटना से मृत्यु योग

1- चतुर्थेश, षष्ठेश व अष्टमेश से सम्बन्ध हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना मं हो।

2- यदि अष्टम भाव में चन्द्र, मंगल, शनि हो तो मृत्यु हथियार द्वारा हो।

3- चन्द्र सूर्य मंगल शनि 8, 5 तथा 9 में हो तो मृत्यु ऊँचाई से गिरने समुद्र, तूफान या वज्रपात से हो।

4- अष्टमेश तथा अष्टम, षष्ठ तथा षष्ठेश और मंगल का इन सबसे सम्बन्ध हो तो मृत्यु शत्रु द्वारा होती है।

5- अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो, इन पर मंगल की दृष्टि हो तो अकाल मौत हो। जन्म विषघटिका में होने से विष, अग्नि क्रूरजीव से मृत्यु हो।

6- जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल हो तो मृत्यु वाहन दुर्घटना तथा सवारी से गिरने से होती है।

7- मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम भाव में क्षीण चन्द्र के साथ हो तो पक्षी के कारण दुर्घटना में मृत्यु हो।

8- सूर्य, मंगल, केतु की यति हो जिस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अग्नि दुर्घटना में मृत्यु हो। चन्द्र मेष$ वृश्चिक राशि में हो तो पाप ग्रह की दृष्टि से अग्नि अस्त्र से मृत्यु हो।

9- द्विस्वभाव राशि लग्न में सूर्य+चन्द्र हो तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से हो।

10- लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हो, मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में हो। द्वादश भाव में मंगल अष्टम भाव में शनि से हथियार द्वारा हत्या हो।

11- यदि नंवाश लग्न में सप्तमेश शनि युत हो 6, 8, 12 में हो जहर खाने से मृत्यु हो ।

12- चन्द्र मंगल अष्टमस्थ हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है। 13- लग्नेश अष्टमेश और सप्तमेश साथ बैठे हों तो जातक स्त्री के साथ मरता है।

आत्म हत्या से मृत्यु योग

1- लग्न व सप्तम भाव में नीच ग्रह हों
2- लग्नेश व अष्टमेश का सम्बन्ध व्ययेश से हो।
3- अष्टमेश जल तत्व हो तो जल में डूबने से, अग्नि तत्व हो तो जलकर, वायु तत्व हो तो तूफान व बज्रपात से अपघात हो ।
4- कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में पानी में डूबकर आत्मघात कराता है
5- यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हो तो जातक हत्या, अपघात, दुर्घटना, बीमारी से मरता है।

ग्रहों के अनुसार स्त्री पुरूष के आकस्मिक मृत्यु योग

1- चतुर्थ भाव में सूर्य और मंगल स्थित हों, शनि दशम भाव मं स्थित हो तो शूल से मृत्यु तुल्य कष्ट तथा अपेंडिक्स रोग से मौत हो सकती है।

2- द्वितीय स्थान में शनि, चतुर्थ स्थान में चन्द्र, दशम स्थान में मंगल हो तो घाव में सेप्टिक से मृत्यु होती है।

3- दशम स्थान में सूर्य और चतुर्थ स्थान में मंगल स्थित हो तो कार, बस, वाहन या पत्थर लगने से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

4- शनि कर्क और चन्द्रमा मकर राशिगत हो तो जल से अथवा जलोदर से मृत्यु हो।

5- शनि चतुर्थस्थ, चन्द्रमा सप्तमस्थ और मंगल दशमस्थ हो तो कुएं में गिरने से मृत्यु होती है

6- क्षीण चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो उसके साथ मं$रा$शनि हो तो पिशाचादि दोष से मृत्यु हो।

7- जातक का जन्म विष घटिका में होने से उसकी मृत्यु विष, अग्नि तथा क्रूर जीव से होती है।

8- द्वितीय में शनि, चतुर्थ में चन्द्र और दशम में मंगल हो तो मुख मं कृमिरोग से मृत्यु होती है।

9- शुभ ग्रह दशम, चतुर्थ, अष्टम, लग्न में हो और पाप ग्रह से दृष्ट हो तो बर्छी की मार से मृत्यु हो।

10- यदि मंगल नवमस्थ और शनि, सूर्य राहु एकत्र हो, शुभ ग्रह दृष्ट न हो तो बाण से मृत्यु हो

11- अष्टम भाव में चन्द्र के साथ मंगल, शनि, राहु हो तो मृत्यु मिर्गी से हो।

12- नवम भाव में बुध शुक्र हो तो हृदय रोग से मृत्यु होती है।

13- अष्टम शुक्र अशुभ ग्रह से दृष्ट हो तो मृत्यु गठिया या मधुमेह से होती है

14- स्त्री की जन्म कुण्डली सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि या वृश्चिक राशिगत होकर पापी ग्रहों के बीच हो तो महिला शस्त्र व अग्नि से अकाल मृत्यु को प्राप्त होती है।

15- स्त्री की जन्म कुण्डली में सूर्य एवं चन्द्रमा लग्न से तृतीय, षष्ठम, नवम, द्वादश भाव में स्थित हो तो तथा पाप ग्रहों की युति व दृष्टि हो तो महिला फंासी लगाकर या जल में कूद कर आत्म हत्या करती है।

16- द्वितीय भाव में राहु, सप्तम भाव में मंगल हो तो महिला की विषाक्त भोजन से मृत्यु हो

17- सूर्य एवं मंगल चतुर्थ भाव अथवा दशम भाव में स्थित हो तो स्त्री पहाड़ से गिर कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

18- दशमेश शनि की व्ययेश एवं सप्तमेश मंगल पर पूर्ण दृष्टि से महिला की डिप्रेशन से मृत्यु हो।

19- पंचमेश नीच राशिगत होकर शत्रु ग्रह शुक्र एवं शनि से दृष्ट हो तो प्रसव के समय मृत्यु हो ।

20- महिला की जन्मकुण्डली में मंगल द्वितीय भाव में हो, चन्द्रमा सप्तम भाव में हो, शनि चतुर्थ भाव में हो तो स्त्री कुएं, बाबड़ी, तालाब में कूद कर मृत्यु को प्राप्त होती है।

लग्नेश के नवांश से मृत्यु, रोग अनुमान

1- मेष नवांश हो तो ज्वर, ताप जठराग्नि तथा पित्तदोष से मृत्यु हो
2- वृष नवांश हो तो दमा, शूल त्रिदोषादि, ऐपेंडिसाइटिस से मृत्यु हो।
3- मिथुन नवांश हो तो सिर वेदना,
4- कर्क नवांश वात रोग व उन्माद से मृत्यु हो।
5- सिंह नवांश हो तो विस्फोटकादि, घाव, विष, शस्त्राघात और ज्वर से मृत्यु।
6- कन्या नवांश हो तो गुह्य रोग, जठराग्नि विकार से मृत्यु हो।
7- तुला नवांश में शोक, बुद्धि दोष, चतुष्पद के आघात से मृत्यु हो।
8- वृश्चिक नवांश में पत्थर अथवा शस्त्र चोट, पाण्डु ग्रहणी वेग से।
9- धनु नवांश में गठिया, विष शस्त्राघात से मृत्यु हो।
10- मकर नवांश में व्याघ्र, शेर, पशुओं से घात, शूल, अरुचि रोग से मृत्यु।
11- कुंभ नवांश में स्त्री से विष पान श्वांस तथा ज्वर से मृत्यु हो।
12- मीन नवांश में जल से तथा संग्रहणी रोग से मृत्यु हो।

गुलिक से मृत्युकारी रोग अनुमान

1- गुलिक नवांश से सप्तम शुभग्रह हो तो मृत्यु सुखकारी होगी।
2- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में मंगल हो तो जातक की युद्ध लड़ाई में मृत्यु होगी।
3- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में शनि हो तो मृत्यु चोर, दानव, सर्पदंश से होगी।
4- गुलिक नवांश से सप्तम स्थान में सूर्य हो तो राजकीय तथा जलजीवांे से मृत्यु।

अरिष्ट महादशा व दशान्तर में मृत्यु

1- अष्टमेश भाव 6, 8, 12 मं हो तो अष्टमेश की दशा-अन्तर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह अन्तर्दशा में मृत्यु होती है।
2- कर्क, वृश्चिक, मीन के अन्तिम भाग ऋक्ष संधि कहलाते हैं। ऋक्ष सन्धि ग्रह की दशा मृत्युकारी होती है।
3- जिस महादशा में जन्म हो महादशा से तीसरा, पांचवां, सातवें भाव की महादशा यदि नीच, अस्त, तथा शत्रु ग्रह की हो तो मृत्यु होती है।
4- द्वादशेश की महादशा में द्वितीयेश का अन्तर आता है अथवा द्वितीयेश दशा में द्वादश अन्तर में अनिष्टकारी मृत्यु तुल्य होता है।
5- छिद्र ग्रह सात होते हैं

1. अष्टमेश,
2. अष्टमस्थ ग्रह,
3. अष्टमदर्शी ग्रह,
4. लग्न से 22 वां द्रेष्काण अर्थात अष्टम स्थान का द्रेष्काण जिसे रवर कहते हैं उस द्रेष्काण स्वामी,
5. अष्टमेश के साथ वाला ग्रह,
6. चन्द्र नवांश से 64 वां नवांशपति,
7. अष्टमेश का अतिशत्रु ग्रह।

इन सात में से सबसे बली ग्रह की महादशा कष्टदायक व मृत्युकारी होगी।

1. आकस्मिक मृत्यु के बचाव के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। जप रुद्राक्ष माला से पूर्वी मुख होकर करें।

2. वाहन चलाते समय मादक वस्तुओं का सेवन न करें तथा अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन न करें अन्यथा पिशाची बाधा हावी होगी वैदिक गायत्री मंत्र कैसेट चालू रखें।

3. गोचर कनिष्ठ ग्रहों की दशा में वाहन तेजी से न चलायें।

4. मंगल का वाहन दुर्घटना यंत्र वाहन में लगायें, उसकी विधिवत पूजा करें।

5. नवग्रह यंत्र का विधिविधान पूर्वक प्रतिष्ठा कर देव स्थान में पूजा करें।

6. सूर्य कलाक्षीण हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र, चन्द्र की कला क्षीण हो तो चन्द्रशेखर स्तोत्र, मंगल की कला क्षीण हो तो हनुमान स्तोत्र, शनि कला क्षीण हो तो दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। राहु की कला क्षीण हो तो भैरवाष्टक व गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

गणित पद्धति से अरिष्ट दिन मृत्यु समय के लग्न, अरिष्ट मास का ज्ञान अरिष्ट मास:

1- लग्न स्फूट और मांदी स्फुट को जोड़कर जो राशि एवं नवांश हो उस राशि के उसी नवांश पर जब गोचर में सूर्य आता है तब जातक की मृत्यु होती है।
2- लग्नेश के साथ जितने ग्रह हां उन ग्रहों की महादशा वर्ष जोड़कर 12 का भाग दें। जो शेष बचे उसी संख्यानुसार सौर मास में अरिष्ट होगा।

अरिष्ट दिन:

1- मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़कर 18 से गुणन करें उसमें शनि स्फुट को जोड़कर 9 से गुणन कर जोड़ दें। जब गोचर चन्द्र उस राशि के नवांश में जाता है तो उस दिन अरिष्ट दिन होगा।

मृत्यु समय लग्न का ज्ञान:

2- लग्न स्फुट मांदी स्फुट और चन्द्र स्फुट को जोड़ देने से जो राशि आये उसी राशि के उदय होने पर जातक की मृत्यु होती है। 

महान नास्तिक लोग जिन्होंने मानव सभ्यता ...

दुनिया के वो महान नास्तिक लोग जिन्होंने मानव सभ्यता के विकास को गति दी

1- आचार्य चार्वाक का कहना था -"इश्वर एक रुग्ण विचार प्रणाली है , इससे मानवता का कोई कल्याण होने वाला नहीं है।"
2 - अजित केशकम्बल ( 523 ई . पू )अजित केश्कंबल बुद्ध के समय कालीन विख्यात तीर्थंकर थे , त्रिपिटीका में अजित के विचार कई जगह आये हैं , उनका कहना था - "दान, यज्ञ , हवन नहीं .. लोक परलोक नहीं।"
3 - सुकरात ( 466-366 ई पू ) "इश्वर केवल शोषण का नाम है।"
4 - इब्न रोश्द ( 1126-1198 ) इनका जन्म स्पेन के मुस्लिम परिवार में हुआ था , रोश्द के दादा जामा मस्जिद के इमाम थे , इन्हें कुरआन कंठस्थ थी। इन्होने अल्लाह के अस्तित्व को नकार दिया था और इस्लाम को राजनैतिक गिरोह कहा था। जिस कारण मुस्लिम धर्मगुरु इनकी जान के पीछे पड़ गए थे। रोश्द ने दर्शन के बुद्धि प्रधान हथियार से इस्लाम के मजहबी वादशास्त्रियों की खूब खबर ली।
5 - कॉपरनिकस ( 1473-1543) इन्होने धर्म गुरुओं की पोल खोली थी, इसमें धर्मगुरु ये कह कर को मुर्ख बना रहे थे की सूर्य प्रथ्वी के चक्कर लगता है। कॉपरनिकस ने अपने प्रयोग से ये सिद्ध कर दिया की प्रथ्वी सहित सौर मंडल के सभी ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते हैं, जिस कारण धर्म गुरु इतने नाराज हुए की कोपरनिकस के सभी सार्थक वैज्ञानिको को कठोर दंड देना प्रारंभ कर दिया।
6 - मार्टिन लूथर ( 1483-1546) इन्होने जर्मनी में अन्धविश्वास, पाखंड और धर्मगुरुओं के अत्याचारों के खिलाफ आन्दोलन किया। इन्होने कहा था "व्रत, तीर्थयात्रा, जप, दान आदि सब निरर्थक है।"
7- सर फ्रेंसिस बेकन ( 1561-1626) अंग्रेजी के सारगर्भित निबंधो के लिए प्रसिद्ध, तेइस साल की उम्र में ही पार्लियामेंट के सदस्य बने, बाद में लार्ड चांसलर भी बने। उनका कहना था, "नास्तिकता व्यक्ति को विचार, दर्शन, स्वाभाविक निष्ठां , नियम पालन की और ले जाती है, ये सभी चीजे सतही नैतिक गुणों की पथ दर्शिका हो सकती हैं।"
8 - बेंजामिन फ्रेंकलिन (1706-1790) इनका कहना था "सांसारिक प्रपंचो में मनुष्य धर्म से नहीं बल्कि इनके न होने से सुरक्षित है।"
9- चार्ल्स डार्विन (1809-1882) इन्होने ईश्वरवाद और धार्मिक गुटों पर सर्वाधिक चोट पहुचाई, इनका कहना था "मैं किसी ईश्वरवाद में विश्वास नहीं रखता और न ही आगामी जीवन के बारे में।"
10- कार्ल मार्क्स ( 1818-1883) कार्ल मार्क्स का कहना था "ईश्वर का जन्म एक गहरी साजिश से हुआ है" और "धर्म एक अफीम है" उनकी नजर में धर्म विज्ञानं विरोधी, प्रगती विरोधी, प्रतिगामी, अनुपयोगी और अनर्थकारी है। इसका त्याग ही जनहित में है।
11- पेरियार (1879-1973) इनका जन्म तमिलनाडु में हुआ और इन्होने जातिवाद, ईश्वरवाद, पाखंड, अन्धविश्वास पर जम के प्रहार किया l
12- अल्बर्ट आइन्स्टीन ( 1879-1955) विश्वविख्यात वैज्ञानिक का कहना था "व्यक्ति का नैतिक आचरण मुख्य रूप से सहानभूति, शिक्षा और सामाजिक बंधन पर निर्भर होना चाहिए, इसके लिए धार्मिक आधार की कोई आवश्यकता नहीं है। मृत्यु के बाद दंड का भय और पुरस्कार की आशा से नियंत्रित करने पर मनुष्य की हालत दयनीय हो जाती है।"
13- भगत सिंह (1907-1931) प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी भगत सिंह ने अपनी पुस्तक "मैं नास्तिक क्यों हूँ?" में कहा है "मनुष्य ने जब अपनी कमियों और कमजोरियों पर विचार करते हुए अपनी सीमाओं का अहसास किया तो मनुष्य को तमाम कठिनाईयों का साहसपूर्ण सामना करने और तमाम खतरों के साथ वीरतापूर्ण जुझने की प्रेरणा देनेवाली तथा सुख दिनों में उच्छखल न हो जाये इसके लिए रोकने और नियंत्रित करने के लिए ईश्वर की कल्पना की गयी है।"
14- लेनिन– लेनिन के अनुसार "जो लोग जीवन भर मेहनत मशक्कत करते है और आभाव में जीते हैं उन्हें धर्म इहलौकिक जीवन में विनम्रता और धैर्य रखने की तथा परलोक में सुख की आशा से सांत्वना प्राप्त करने की शिक्षा देता है, परन्तु जो लोग दुसरो के श्रम पर जीवित रहते हैं उन्हें इहजीवनमें दयालुता की शिक्षा देता है, इस प्रकार उन्हें शोषक के रूप में अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने का एक सस्ता नुस्खा बता देता है।"
15- गौतम बुद्ध – बुद्ध कहते है की भगवान नाम की कोई चीज नही है! भगवान के लिये अपना समय नष्ट मत करो। केवल सत्य ही सब कुछ है।
16- रामस्वरूप वर्मा (संस्थापक- अर्जक संघ)-अर्जक समाज का शोषण करने के लिए ईश्वर, आत्मा, पुनर्जन्म, भाग्यवाद , जाती-पाती, छुआछूत आदि ब्राह्मणों ने बनाया है।

17.Dinesh Aastik_ चमत्कारी शक्ति का दावा करने वाले बाबाओं के लिए 22 खुली चुनौतियाँ
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डा0 अब्राहम कोवूर ने अंधविश्वास के विरूद्ध जोरदार लडाई लडी। वह कोलम्बो में विज्ञान विभाग के प्रधान थे। 1959 में उससे रिटायर होने के बाद अपने इसी मिशन में लगे रहे। उनका कहना था कि जो व्यक्ति चमत्कारी शक्तियों का दावा करते हैं, केवल पाखंडी या दिमागी तौर पर पागल व्यक्ति हैं।

उन्होंने तमाम बाबाओं को खुली चुनौती देते हुए 22 चुनौतियाँ रखी थीं। कहा - जो भी व्यक्ति इनमें से एक चुनौती में भी खरा उतर कर दिखाएगा, उसे एक लाख रूपये का नकद इनाम दिया जाएगा-
1- जो किसी सीलबंद करेंसी नोट की ठीक नकल पैदा कर सकता हो।
2- जो किसी सीलबंद करेंसी नोट का नंबर पढ सकता हो।
3- जो जलती आग में आधे मिनट के लिए नंगे पैर खडा हो सकता हो।
4- ऐसी वस्तु जो मैं मांगूं, हवा में से लाकर दे।
5- टेलीपैथी द्वारा किसी के विचार पढ कर बता सकता हो।
6- मनोवैज्ञानिक शक्ति से किसी वस्तु को हिला या मोड सकता हो।
7- प्रार्थना या आत्मिक शक्ति या पवित्र राख से अपने शरीर को एक इंच बढा सकता हो।
8- जो योग शक्ति द्वारा हवा में उड सके।
9- यौगिक शक्ति से पांच मिनट के लिए अपनी नब्ज रोक सके।
10- पानी पर पैदल चल सके।
11- अपना शरीर एक स्थान पर छोड कर दूसरी जगह हाजिर हो।
12- 30 मिनट के लिए श्वास क्रिया रोक सके।
13- रचनात्मक बुद्धि का विकास करे। भक्ति या अज्ञात शक्ति द्वारा अत्मज्ञान प्राप्त करे।
14- पुनर्जन्म के तौर पर कोई अनोखी भाषा बोल सके।
15- ऐसी आत्मा या प्रेत हाजिर करे, जिसकी फोटो खींची जा सकती हो।
16- फोटो खींचने के बाद वह फोटो से अलोप हो सके।
17- ताला लगे कमरे में से अलौकिक शक्ति द्वारा बाहर निकल सके।
18- किसी बस्तु का भार बढा सके।
19- छिपी हुई वस्तु को खोज सके।
20- पानी को शराब या पेट्रोल में बदल सके।
21- शराब को रक्त में बदल सके।
22- किसी चित्र या जन्म पत्रियों को देख कर उन आदमियों या औरतों की पहचान कर ले.
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यह चुनौती डा0 कोवूर द्वारा 1963 में सारे विश्व के अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित कराई गयी। वर्ष 1978 में उसकी मौत तक कोई भी व्यक्ति एक भी चुनौती नहीं जीत सका। उनकी मृत्यु के बाद भी यह चुनौती बंद नहीं हुई है। रेशनेलिस्ट सोसायटी हरियाणा  ने इस चुनौती को जारी रखा है. पांच लाख रुपए IC के साथ।जो कुछ शर्तों के आज भी जारी है।
आश्चर्य का विषय यह है कि 1963 से चली आ रही इन चुनौतियों को कोई भी चमत्कारी बाबा पूरा नहीं कर सका है। क्या इससे डा0 कोवूर का उपरोक्त कथन कि जो व्यक्ति चमत्कारी शक्तियों का दावा करते हैं, केवल पाखंडी या दिमागी तौर पर पागल व्यक्ति हैं

हस्त रेखा ज्ञान

घर में गरीबी आने के कारण

घर में गरीबी आने के कारण

1=रसोई घर के पास में गन्दगी रखना।
2=टूटी हुई कन्घी से कंगा करना ।
3=टूटा हुआ सामान उपयोग करना।
4= घर में कूडा-करकट रखना।
5=रिश्तेदारो से बदसुलूकी करना।
6=बांए पैर से पैंट पहनना।
7=सांध्या वेला मे सोना।
8=मेहमान आने पर नाराज होना।
9=आमदनी से ज्यादा खर्च करना।
10=दाँत से रोटी काट कर खाना।
11=चालीस दीन से ज्यादा बाल रखना
12=दांत से नाखून काटना।

14=औरतो का खडे खडे बाल बांधना।
15 =फटे हुए कपड़े पहनना ।
16=सुबह सूरज निकलने तक सोते रहना।
17=पेंड के नीचे पेशाब करना।
18=बैतूल खला में बाते करना।
19=उल्टा सोना।
20=श्यमशान भूमि में हसना ।
21=पीने का पानी रात में खुला रखना
22=रात में मागने वाले को कुछ ना देना
23=बुरे ख्याल लाना।
24=पवित्रता के बगैर धर्मग्रंथ पढना।
25=शौच करते वक्त बाते,करना।
26=हाथ धोए बगैर भोजन करना ।
27=अपनी औलाद को कोसना।
28=दरवाजे पर बैठना।
29=लहसुन प्याज के छीलके जलाना।
30=साधू फकीर को अपमानित करना या उससे रोटीया फिर और कोई चीज खरीदना।
31=फूक मार के दीपक बुझाना।
32=ईश्वर को धन्यवाद किए बगैर भोजन
करना।
33=झूठी कसम खाना।
34=जूते चप्पल उल्टा देख कर उसको सीधा नही करना।
35=हालात जनाबत मे हजामत करना।
36=मकड़ी का जाला घर में रखना।
37=रात को झाडू लगाना।
38=अन्धेरे में भोजन करना ।
39=घड़े में मुंह लगाकर पानी पीना।
40=धर्मग्रंथ न पढ़ना।
41=नदी,तालाब में शौच साफ करना और उसमें पेशाब करना ।
42=गाय , बैल को लात मारना ।
43=माँ-बाप का अपमान करना ।
44=किसी की गरीबी और लाचारी का मजाक उडाना ।
45=दाँत गंदे रखना और रोज स्नान न करना ।
46=बिना स्नान किये और संध्या के समय भोजन करना ।
47=पडोसियों का अपमान करना, गाली देना ।
48=मध्यरात्रि में भोजन करना ।
49=गंदे बिस्तर में सोना ।
50=वासना और क्रोध से भरे रहना ।
51= दूसरे को अपने से हीन समझना ।

भाई दूज (यम द्वितीया) का पौराणिक महत्व

भाई दूज (यम द्वितीया) विशेष
🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶
पौराणिक महत्व
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शास्त्रों के अनुसार भाई को यम द्वितीया भी कहते हैं इस दिन बहनें भाई को तिलक लगाकर उन्हें लंबी उम्र का आशीष देती हैं और इस दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन किया जाता है  ब्रजमंडल में इस दिन बहनें यमुना नदी में खड़े होकर भाईयों को तिलक लगाती हैं।

भाई दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए।
यदि बहन अपने हाथ से भाई को भोजन कराये तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों को चावल खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है। बहन चचेरी अथवा ममेरी कोई भी हो सकती है। यदि कोई बहन न हो तो गाय, नदी आदि स्त्रीत्व पदार्थ का ध्यान करके अथवा उसके समीप बैठ कर भोजन कर लेना भी शुभ माना जाता है।

इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल भी लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलती हैं।

"गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े"

इसी प्रकार इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है

" सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे"

इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस सन्दर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।

भैया दूज की कथा
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भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।

यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।

🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶राधे राधे


मणिर्लुण्ठति पादाग्रे ......

मणिर्लुण्ठति पादाग्रे काच: शिरसि धार्यते।
क्रयविक्रयवेलायां काच: काचो मणिर्मणि:।।

भावार्थ : मणि पैरों में पड़ी हो और कांच सिर पर धारण किया गया हो, परन्तु क्रय-विक्रय करते समय अर्थात मोल-भाव करते समय मणि मणि ही रहती है और कांच कांच ही रहता है ।।

भाव यह है कि समय अथवा भाग्य के कारण विद्वान व्यक्ति का भले ही सम्मान न हो, पर जब मूल्यांकन का समय आता है तो विद्वान की विद्वता को कोई चुनौती नहीं दे सकता । योग्य व्यक्ति की अलग ही पहचान होती है और अयोग्य व्यक्ति की जग हंसाई ही होती है ।।