करक ग्रह

करक ग्रह वे ग्रह होते है जो जिस भी स्थान से बैढ़ते है और जिस भाव को भी देखते है उस भाव के फलों में विर्धि करते है| जैसे की किसी कुंडली के चोथे भाव में उस कुंडली का कारक ग्रह विराजमान है तो वो ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में चोथे भाव से जुड़े हुवे फल जैसे की भूमि मकान वाहन मानसिक शांति ग्रहस्थ सुख में विरधी करेगा| इसी तरह यदि भाग्य भाव यानी नोवें भाव में विराजमान है तो भाग्य दान धर्म पुण्य से जुड़े हुवे कार्यों में विरधी करेगा|
किसी भी कुंडली में जो लग्न का स्वामी होता है वो उस कुंडली का सबसे प्रबल कारक ग्रह होता है| उसके बाद त्रिकोण भाव यानी पांचवें और नोवें भाव में सिथत राशि के स्वामी उस कुंडली के कारक ग्रह होते है| इसका एक मुख्य कारण है की इन दोनों भावों के स्वामी हमेशा लग्नेश के मित्र होतेहै और इन भावों में सिथत राशि हमेशा लग्न में सिथत राशि के तत्व जैसी होती है जैसे की लग्न में जल तत्व राशि होगी तो इन दोनों भावों में भी जल तत्व राशि होगी|
यानी की कुंडली में लग्न पंचम और नवम भाव के स्वामी मुख्य कारक होते है क्योंकि ये तीनो मुख्य रूप से हमारे जीवन के आधार को दर्शाते है जैसे लग्न से पूरा शरीर तो पंचम से विद्या बुद्धि संतान ईस्ट तो नवम भाव से भाग्य धर्म कर्म पूर्वज आदि | यदि इन तीनो भावों के शुभ फल जातक को मिल जाते है तो अन्य भावों के शुभ फल अपने आप मिल जाते है| यही कारण है की मुख्य रूप से इन तीनो से सम्बन्धित रत्न अधिकतर जातक को पहनाने का चलन है|
इसके बाद केंद्र के ग्रह यानी चोथे सातवें और दसवें भाव के ग्रह कारक होते है लेकिन चूँकि ये लग्नेश के शत्रु भी हो सकते है इसिलिय इनकी कारकत्व कुंडली में इनकी सिथ्ती पर निर्भर करता है|
अब सूर्य चन्द्र को छोड़कर सभी ग्रहों की दो राशि होती है ऐसे में उनकी एक राशि केंद्र या त्रिकोण में होकर दूसरी अशुभ भावों जैसे की 3 6 8 12 में हो सकती है ऐसे में उस ग्रह की मूल त्रिकोण राशि जिस भाव में होती है उस से सम्बन्धित अधिकतर फल जातक को मिलते है या फिर इन दोनों राशि में से यदि किसी राशी में वो ग्रह स्वयम उस भाव में सिथत हो तो उसका फल जातक को मिलता है| साथ ही यदि कोई ग्रह कारक होकर किसी अशुभ भाव का स्वामी है तो यदि वो केंद्र या त्रिकोण भावों मेंसिथत हो तो उसके शुभ भाव के फल ज्यादा मिलते है दुसरे अशुभ भाव के फल जातक को कम मिलते है|
किसी भी कारक ग्रह के फल का अध्ययन करते समय हमे इस भाव का ध्यान अवस्य रखना चाहिए की वो यदि अपनी उंच राशि multrikon राशि या खुद की राशि में होगा तो उसके सम्पूर्ण शुभ फल जातक को मिलेंगे यदि वो शत्रु राशि या नीच की राशि में हुआ तो उसके शुभ फल में बिलकुल न्यूनता आ जायेगी यदि नीच भंग न हुआ तो| साथ ही ये भी देखना जरूरी है की कारक ग्रह कुंडली के किस भाव में है जैसे यदि त्रिक भाव में हुआ तो इन भावों से सम्बन्धित फल में विरधी कर देगा जैसे छटे भाव में हुआ तो ऋण रोग शत्रु में विरधी करेगा| वैसे फल बहुत सी अन्य बातों पर भी निर्भर करता है जो समय समय पर पोस्ट करने की कोशिस की जायेगी|
जय श्री राम

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